नई दिल्ली। पाकिस्तान क्रिकेट टीम के ओपनर इमाम उल हक ने अपनी प्रतिभा के दम पर टीम में जगह बनाई लेकिन लोग इसे स्वीकार नहीं करते थे। पूर्व कप्तान इंजमाम उल हक का भतीजा होने की वजह से टीम के खिलाड़ी उनसे शुरुआत में नफरत करते थे यहां तक कि बात भी नहीं किया करते थे। इमाम ने पूर्व भारतीय विकेटकीपर दीपदास गुप्ता से अपना दर्द साझा किया।
पूर्व भारतीय विकेटकीपर से ESPNCrincinfo के चैट शो Cricketbaazi पर बात करते हुए इमाम ने बताया, ईमानदारी से बताउं तो जब पाकिस्तान टीम में मेरा चयन हुआ था तब मेरा सिर्फ एक दोस्त था, बाबर आजम। लेकिन मेरे और उनके बीच बातचीत कम होती थी क्योंकि वह लगातार नेशनल टीम के लिए खेला करते थे और मैं घरेलू क्रिकेट में खेलता था। इसी वजह से हमारी बातें ज्यादा नहीं हो पाती थी।
"सबसे अहम बात वह अपने क्रिकेट पर ध्यान लगा रहे थे और उनका फॉर्म भी काफी अच्छा था। उन्होंने वनडे में श्रीलंका के खिलाफ लगातार शतक जमाया था। क्योंकि टेस्ट में उनका प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं था वह इसकी भरपाई करना चाहते थे। इसी वजह से वह ज्यादा बात करना नहीं चाहते थे।"
पहली सीरीज में हुआ सौतेला बर्ताव
साल 2017 में श्रीलंका के खिलाफ खेली सीरीज के बारे में इमाम ने बताया कि वह सबसे दूर रहते थे क्योंकि सबके निराश थे। "जब यह सभी चीजों शुरू हुई, मैंने सारे समय अकेले ही खाना खाया है। यह मेरा पहला दौरा था और आप समझ सकते हैं कि पहला दौरा कैसा होता है। जब कभी भी मैं अपना फोन खोलता था लोगों ने मुझे सोशल मीडिया पर टैक किया हुआ होता था या फिर मुझे काफी चीजें भेजा करते थे। मैं बहुत ही निराश था और कुछ भी समझ नहीं आता था।"
"मैंने अपने परिवार के लोगों से बात करना बंद कर दिया था क्योंकि उनपर दबाव नहीं डालना चाहता था, नहीं चाहता था उनको मेरी परेशानी के बारे में पता चले। मैंने अपना दोनों फोन बंद कर दिया और मैनेजर को रखने दे दिया। यह भी कहा था कि मैं इसे नहीं ले सकता इसके मेरे पास से ले जाइए।"
बाथरूम में जाकर घंटे रोते थे इमाम
"मुझे याद है कि मैं बाथरूम में नहाते वक्त घंटों रोता था कि मैंने अब तक एक भी मैच नहीं खेला। (सीरीज के तीसरे मुकाबले में अबूधाबी में पहला मैच खेला था) एक युवा के लिए अपने आप पर शक करना और निराशा में जाना काफी आसान होता है। एक बात जो लगातार दिमाग में चलता रहता है कि अब तक तो मैंने नेशनल टीम के लिए खेला भी नहीं। क्या हुआ अगर मैंने खेला और अच्छा नहीं कर पाया, फिर तो मेरा करियर खत्म हो जाएगा। मैं अपने कमरे से बाहर एक कदम भी नहीं निकला, डर लगता था लोग मुझे बाहर जाने पर परेशान करेंगे क्योंकि दुबई में पाकिस्तानी समुदाय के काफी लोग हैं।"