रायपुर. प्रदेश में कोरोना वायरस से मौतों का आंकड़ा, मिलने वाले संक्रमित मरीजों से कहीं ज्यादा चिंता का विषय बना हुआ है। क्योंकि 80 प्रतिशत ए-सिम्पेटैमेटिक मरीज तो सामान्य इलाज से ठीक हो जा रहे है। मगर, खतरा १-२ प्रतिशत उन मरीजों पर बना हुआ है जो गंभीर बीमारियों से पीडि़त हैं। अब हमें उन्हें बचाना है। आंकड़े गवाह हैं कि कोरोना से अब तक 53 लोग जान गंवा चुके हैं, इनमें 14 लोगों की मौत की वजह सिर्फ कोरोना रहा।
अन्य 39 लोग किसी न किसी बीमारियों से लड़ रहे थे। वायरस अटैक हुआ। एकाएक स्थिति नियंत्रण से बाहर हुई और सांसें थम गईं। इसे चिकित्सकीय भाषा में को-मॉर्विडिटी कहा जाता है। इसलिए बार-बार स्वास्थ्य विभाग अपील जारी कर रहा है कि बुजुर्गों का ध्यान रखें...। अपने परिवार के बीमार सदस्य की पूरी देखभाल करें, फिर चाहे व किसी भी आयुवर्ग का क्यों न हो।
विभाग के आला अफसरों ने एक बार फिर दोहराया है कि बीमार सदस्य को अस्पताल न ले जाएं, घर पर ही डॉक्टरी सलाह से इलाज लें। किसी भी प्रकार की सर्जरी की तत्काल जरुरत न हो तो टालें। क्योंकि अस्पताल में संक्रमण का खतरा अधिक है। बीमार व्यक्ति की स्थिति जरा भी बिगड़े तो तत्काल कंसल्टेंट से बात करें। पूरी सुरक्षा में अस्पताल ले जाएं। इन परिस्थितियों में लापरवाही न बरतें। अब तक सबसे ज्यादा मौत रायपुर में हुईं, क्योंकि गंभीर मरीजों को यही रेफर किया जा रहा है।
वेंटिलेटर वाले मरीजों की शिफ्टिंग नहीं होगी-
निजी अस्पताल में भर्ती मरीज अगर वेंटिलेटर में हैं, तो उसका इलाज निजी अस्पताल में ही किया जाएगा। उसे रेफर नहीं किया जा सकता। यह गाइडलाइन पूर्व में एक घटना के बाद लागू की गई है। जब वेंटिलेटर वाली महिला को निजी अस्पताल ने एम्स रेफर कर दिया था।
सांस की तकलीफ अगले दिन मौत-
प्रदेश में बीते हफ्तेभर में रायपुर के दो और सूरजपुर के एक मरीज को सांस लेने में शिकायत हुई। अस्पताल में भर्ती करवाया गया और अगले दिन मौत हो गई। अब तो हर आयु वर्ग वाले दम तोड़ रहे हैं। 10 साल की बच्ची से लेकर अधिक उम्र तक के लोग जान गंवा चुके हैं।
सावधानी बस इतनी कि घर पर रहें-
जब तक कोरोना वायरस का असर कम नहीं हो जाता, तब तक तो घर के बुजुर्गों को घर पर ही रखें। उन्हें बाहर न निकलें दें। खासकर जो अन्य किसी भी बीमारी से ग्रसित हैं। सामान्य बीपी, शुगर से ही पीडि़त क्यों न हों? क्योंकि वायरस इनके लिए सबसे ज्यादा घातक बन गया है। बीते हफ्ता 10 दिन में दम तोडऩे वाले अधिकांश व्यक्ति बीपी, सुगर, सांस लेने में तकलीफ की बीमारियों की शिकायत लेकर अस्पताल में भर्ती हुए थे।